Digital Signature किसी व्यक्ति (person) के हस्ताक्षर का इलेक्ट्रानिक रूप में परिवर्तन है। इसका use किसी भी दस्तावेज को प्रमाणित (सर्टिफाइड) करने के लिए किया जाता है।
डिजिटल सिग्नेचर (Digital Signature) किसी व्यक्ति के हस्ताक्षर का इलेक्ट्रानिक रूप है। इसका इस्तेमाल किसी दस्तावेज को प्रमाणित करने के लिए किया जा सकता है। ये सर्टिफिकेट कंट्रोलर ऑफ सर्टिफाइंग अथॉरिटीज (सीसीए) द्वारा स्वीकृत सर्टिफाइंग अथॉरिटी जारी करती है। डिजिटल सर्टिफिकेट ‘यूएसबी टोकन’ के रूप में आता है और आमतौर पर एक या दो साल के लिए वैध रहता है। Therefore वैधता समाप्त होने पर इसे रिन्यू कराया जा सकता है। क्या आप “Digital Signature” के बारे में फुल इनफार्मेशन हासिल करना चाहते है, तो आप हमारे आर्टिकल से जुड़े रहिए, यहां हम Digital Signature क्या है और इससे जुडी पूरी जानकारी के बारे जानेगे तो चलिए शुरू करते है…
दोस्तों वैसे तो आप Signatures को अपने जीवन में जगह जगह में use करते है। Signature in other words हस्ताक्षर ये हमारी सहमति की निशानी है। यदि कहीं हम अपने signature लिख रहे हैं तब इसका मतलब होता है की हम उस चीज़ से अपनी सहमति जाहिर कर रहे है। जैसे की किसी Bank के check book में, या फिर किसी सरकारी दस्तावेज में जहाँ हम सहमत हो तो वहां अपनी मंशा के मुताबिक Signature करते है। चलिए digital signature के बारे और अच्छी तरह जानते है।
Firstly डिजिटल हस्ताक्षर digital messages या documents की प्रामाणिकता की पुष्टि करने के लिए एक mathematical scheme है। ये एक Digitally Sign किया हुआ एक special कोड होता है, जिसका उपयोग किसी भी ऑनलाइन डॉक्यूमेंट हमारे डिजिटल हस्ताक्षर द्वारा प्रमाणिता और दर्शाने के लिए किया जाता है।
For this reason valid digital signature एक प्राप्तकर्ता को यह विश्वास करने का कारण देता है कि संदेश एक ज्ञात प्रेषक ( प्रमाणीकरण ) द्वारा बनाया गया था जो प्रेषक संदेश भेजने (गैर-अस्वीकरण) से इनकार नहीं कर सकता है। इसकी Value हाथ से किए गए Signature के बराबर है। हालांकि देखा जाए तो हाथ से किए गए सिग्नेचर को मॉडिफाई किया जा सकता है लेकिन digital signature के साथ ऐसा मुमकिन नहीं है।
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Digital signature provider एक विशेष तरह के प्रोटोकॉल का इस्तेमाल करते हैं जिसे Public key Infrastructure (PKI) कहते हैं, therefore इसके इस्तेमाल से signer के डिटेल्स के आधार पर 2 तरह की long mathematical code generate होती है जो निम्लिखित हैं –
Since जब भी कोई डॉक्यूमेंट इलेक्ट्रॉनिकली Sign किया जाता है तो सिग्नेचर Signer के Private key के द्वारा Generate होता है जिसमे mathematical algorithm के द्वारा document को match करना, details check करना शामिल होता है इस process को hash कहते हैं। ये Digital signature की ये मुख्य Security है।
Hash को ही Signer Private key से Encrypt करता है जिस के consequently ही Digital Signature बनता है। डिजिटल सिग्नेचर signer के डॉक्यूमेंट के साथ attach यानी जुड़ जाता है। इसके साथ डॉक्यूमेंट को Sign करने का समय व Public key भी।
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Further जब ये डॉक्यूमेंट रिसीवर यानी प्राप्त करता को मिलेगा तो वो इसे सत्यापित करने के लिए डॉक्यूमेंट के साथ मिले Public key का इस्तेमाल करेगा। जो Signer के द्वारा Create किया गया था। जब रिसीवर public key का इस्तेमाल करेगा, तो वो फिर हैश का कोड रिसीवर के पब्लिक की के द्वारा Decrypt हो जाएगा।
अगर वो हैश कोड रिसीवर के पब्लिक की द्वारा Match हो जाता है तो इसका मतलब डॉक्यूमेंट में कोई छेड़छाड़ नहीं है that is to say Modification नहीं हुई है और ये असली है और अगर रिसीवर के Public key के Decryption से वो कोड मैच नहीं करता है तो इसका मतलब डॉक्यूमेंट असली नहीं है या उसे किसी और ने भेजा है।
Secondly ध्यान देने वाली बात ये है कि उपरोक्त प्रक्रिया में कहीं भी डॉक्यूमेंट को Decrypt नहीं किया गया है। यानी Digital Signature डॉक्यूमेंट Issuer के पहचान को Verify करता है की ये डॉक्यूमेंट इस नाम के व्यक्ति द्वारा Sign किया गया है जो कि असली डॉक्यूमेंट है।
Digital Signature Public key Cryptography के ऊपर ही आधारित है जिसे Asymmetric Cryptography भी कहते है। ये Public key Algorithm जैसे की RSA का इस्तेमाल कर के दो keys generate करता है, जो की Private और Public है और ये दोनों keys Mathematically linked होते है। Digital Signature बनाने के लिए Signing Software की मदद से जिस electronic data का signature बनाना है उसका one way Hash बनाया जाता है। Then Private Key की मदद से hash को encrypt किया जाता है।
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इसी encrypted hash और उसके संग जुड़े दुसरे information जैसे Hashing Algorithm को Digital Signature कहा जाता है। यहाँ हम पुरे message की जगह खाली Hash को ही encrypt करते हैं ऐसा इसलिए क्यूंकि Hash Function की मदद से हम किसी arbitrary input को एक fixed length value में बदल सकते हैं, जो की आम तोर से छोटा होता है। इससे समय की बचत होती है, Because Hashing, Signing के मुकाबले बहुत faster है।
Hash का value unique होता है यदि हम उसके Hashed Data को देखें तब. यदि कुछ भी बदलाव आता है उस डाटा में, यहाँ तक की अगर एक character की भी हेर फेर होती है तब result में कुछ दूसरा ही value दिखायेगा।
यह विशेषता दूसरों को हैश के Decrypt करने के लिए हस्ताक्षरकर्ता की Public Key का उपयोग करके data की Integrity को validate करने में सक्षम बनाता है. अगर decrypted hash match करता है दुसरे computed Hash के साथ तब ये प्रमाण देता है की data में कोई बदलाव नहीं हुआ है और अगर दोनों Hash के data match नहीं किये तो ये बात मुमकिन है की डाटा में कुछ बदलाव जरुर हुआ है, इस पर और भरोसा नहीं किया जा सकता।
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अब में आप लोगों को एक आसान सा उदहारण देकर समझाना चाहता हूँ. For example की एक आदमी है “A” जो की email के जरिये कुछ जरुरी document भेजना चाहता है, दूसरे आदमी “B” को.
ऐसा करने के बाद अब वो document digitally signed हो जाता है. और उसे दुसरे आदमी को भेज दिया जाता है। अब दुसरे आदमी “B” को Signed Document मिल जाता है, अभी उस document की authenticity को check करने के लिए अब उसे कुछ जरुरु चीज़ें करनी पड़ेगी।
अब दोनों H1 और H2 को compare करना पड़ेगा, और अगर H1 और H2 दोनों सामान निकले, तो हम बोल सकते हैं की वह Signed Document पूरी तरह से original है और उसमे कोई भी हेर फेर नहीं हुई है।
आपको बता दूँ की digital certificate और digital signature दोनों में बहुत अंतर है। Digital Certificate का इस्तेमाल किसी website की trustworthiness को verify करने के लिए होता है जहाँ Digital Signature का इस्तेमाल किसी document की को verify करने के लिए होता है।
तो इस बारे में हम ये बोल सकते हैं की जब तक आपकी Private Key आपके पास सुरक्षित है, तब तक Digital Certificate का इस्तेमाल करना पूरा safe है।
आपकी जानकारी के लिए बता दूँ की Private Keys को generate किया जाता है और उसे FIPS compliant Cryptographic Token में store किया जाता है इसलिए इसे Temper करना नामुमकिन सा काम है. हम कह सकते हैं की Private Keys उस Cryptographic Token में ही बनता है, वहीँ रहता है और उसी के अन्दर ही ख़त्म हो जाती है और ये कभी भी बहार नहीं आता।
Digital Signing के दौरान Private Keys की जरुरत पड़ती है उसे एक सॉफ्टवेर में इस्तेमाल करने के लिए और ऐसा करने के लिए एक PIN की भी जरुरत पड़ती है, तो आपको इस Cryptographic Token के साथ साथ उस PIN को भी सुरक्षित रखना पड़ता है।
इसी कारण से ये बहुत हो Safe है Because किसी के Digital Signature को access करने के लिए आपको उसके Cryptographic Token के साथ साथ उसका PIN भी जानना पड़ेगा।
अब आप लोगों के मन में ये सवाल जरुर उठ रहा होगा की आखिर ये Digital Signature हमारे Indian Law से certified है या नहीं, तो घवराने की जरुरत नहीं है में आपको इस बारे में भी जानकारी दे रहा हूँ.
Section 3 Information Technology Act, 2000 (जिसे 2008 में update किया गया) के तहत Digital Signature को legal बताया गया है. Section 35 में इसे अच्छी तरह से दर्शाया गया है की कोन सी Certifying Authority issue करेगी “Digital Signature Certificate” यदि किसी applicant ने Digital Signature generate कर लिया है.
अगर में आज के दोर के बारे में कुछ बोलूं तो में ये कह सकता हूँ की आजकल मार्किट में ऐसी अनेक modern Email प्रोग्राम आ चुकी है जो की Digital Signature और Digital Certificate को सपोर्ट करते हैं, और ईमेल का जाना आना बड़ा आसान कर दिए हैं।
क्यूंकि इनकी मदद से डिजिटल signed incoming message को validate करना बहुत ही आसान है. इसी कारण Digital Signature का इस्तमाल बहुत ही जारो सोरो से हो रहा है क्यूंकि इनसे digital document की authenticity, data integrity और non-repudiation का प्रमाण मिलता हैं अगर हम किसी transaction के बात करें Internet में।
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